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प्रग गत दिनों दिवंगत हुए प्रलेस हरियाणा राज्य इकाई के अध्यक्ष एवं प्रलेस केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य डा. सुभाष मानसा की स्मृति शेष को समर्पित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रलेस हरियाणा राज्य इकाई के महासचिव एवं प्रलेस राष्ट्रीय सचिवमंडल के सदस्य डा. हरविंदर सिंह सिरसा, प्रलेस सिरसा के अध्यक्ष डा. गुरप्रीत सिंह सिंधरा, सचिव डा. शेर चंद, पूर्व अध्यक्ष रमेश शास्त्री, पंजाबी लेखक सभा, सिरसा के अध्यक्ष परमानंद शास्त्री व वरिष्ठ उपाध्यक्ष डा. हरमीत कौर पर आधारित अध्यक्षमंडल ने की। कुलदीप सिरसा द्वारा एक क्रन्तिकारी गीत की शानदार प्रस्तुति व परमानंद शास्त्री द्वारा सभी उपस्थितजन का स्वागत करने व कार्यक्रम की रूपरेखा से अवगत करवाए जाने के ततपश्चात चार सत्रों में आयोजित इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में डा. सुभाष मानसा को उपस्थितजन द्वारा मौन धारण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर डा. हरविंदर सिंह सिरसा ने डा. सुभाष मानसा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करते हुए कहा कि एक प्रतिबद्ध शिक्षक एवं शिक्षाविद, प्रबुद्ध मार्क्सवादी चिंतक, ओजस्वी वक्ता व एक सुहृदय व्यक्तित्व के तौर पर डा. सुभाष मानसा की स्मृति सदैव बनी रहेगी। द्वितीय सत्र में डा. गुरप्रीत सिंह सिंधरा के पंजाबी नाटक ‘जो लरै दीन के हेत, सुरजीत सिंह सिरड़ी के पंजाबी काव्य-संग्रह ‘मिट्टी करे सुआल’ व प्रो. हरभगवान चावला के हिंदी कहानी संग्रह ‘बाँसुरी तथा अन्य कहानियाँ’ पर क्रमशः डा. कुलविंदर सिंह पदम, डा. बलराज सिंह सिद्धू व वीरेंदर भाटिया द्वारा विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की गई। डा. कुलविंदर सिंह पदम ने कहा कि बाबा बंदा सिंह बहादुर के जीवन-वृत्तांत पर आधारित नाटक ‘जो लरै दीन के हेत’ अपने हितों के रक्षार्थ आमजन को संघर्षरत रहने के लिए प्रेरित करता है। डा. बलराज सिंह सिद्धू ने ‘मिट्टी करे सुआल’ की कविताओं के सरोकारों को स्पष्ट करते हुए इन्हें तमाम समकालीन सामाजिक सरोकारों से लबरेज़ बताया। ‘बाँसुरी तथा अन्य कहानियाँ’ पर चर्चा करते हुए वीरेंदर भाटिया ने कहा कि यह कहानियाँ प्रेमचंद परंपरा को और विस्तार देते हुए आमजन के जीवन यथार्थ को सटीक अभिव्यक्ति प्रदान करने में सक्षम नज़र आती हैं। तीसरे सत्र में सुरजीत सिंह सिरड़ी ने मक्खन लाल शर्मा व सुरजीत सिंह सिरड़ी द्वारा प्रो. हरभगवान चावला के पंजाबी में अनूदित काव्य-संग्रह ‘कुंभ ‘च छुटियाँ औरतां’ में से कविताओं व प्रो. हरभगवान चावला ने अपने लघु-कथा संग्रह ‘सब से ऊँची ज़मीन’ में से लघु-कथाओं की प्रस्तुति दी। इन सत्रों का संचालन डा. शेर चंद ने किया। डा. हरमीत कौर द्वारा ‘काव्य-गोष्ठी’ पर आधारित चतुर्थ एवं अंतिम सत्र में डा. शील कौशिक, डा. आरती बंसल, डा. मेघा शर्मा, डा. हरमीत कौर, छिन्दर कौर सिरसा व रमनदीप मान ने सामाजिक सरोकारों से सराबोर भावपूर्ण कविताओं की ख़ूबसूरत प्रस्तुतियां दीं। अपने अध्यक्षीय संबोधन में डा. हरविंदर सिंह सिरसा व रमेश शास्त्री ने इस अत्यंत सफ़ल एवं सार्थक आयोजन हेतु आयोजकों को मुबारकबाद देते हुए ऐसे आयोजनों की निरंतरता को बनाए रखने का आह्वान किया। डा. गुरप्रीत सिंह सिंधरा ने सभी उपस्थितजन के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम के दौरान सुभाष चंद्र द्वारा रचित काव्य-संग्रह ‘दिल्ली दूर है’ को भी लोकार्पित किया गया। इस अवसर पर प्रो. रूप देवगुण, डा. प्रेम कंबोज, मेजर शक्तिराज कौशिक, डा. निर्मल सिंह, डा. विक्रम बंसल, का. जगरूप सिंह चौबुर्जा, डा. हररत्न सिंह गाँधी, कृपा शंकर त्रिपाठी, डा. हरविंदर कौर, गुरदीप कौर, नरीना सैनी, संदीप कौर, महक भारती, मुस्कान, सिमरन, मोनिका, जसप्रीत मौजगढ़, ज्ञान प्रकाश पीयूष, हरीश सेठी झिलमिल, केशव दत्त, गुरविंदर सिंह, अनीश कुमार, डा. मंगा राम, सुशील पुरी, सुरजीत सिंह रेणू, मा. बूटा सिंह, हमजिंदर सिंह सिद्धू, पुरषोत्तम शास्त्री, सदीव सिंह, नवदीप धूड़िया, सुखदेव सिंह ढिल्लों, नवनीत सिंह रेणू, सिमरप्रीत सिंह, रिछपाल सिंह खटड़ा, हरमीत सिंह, गुरकीरत सिंह, बिट्टू मलिकपुरा, भुपिंदर पन्नीवालिया, प्रभु दयाल, लाज पुष्प, विशाल वत्स, मा. मुख्त्यार सिंह चट्ठा, हीरा सिंह, ओम प्रकाश, बलदेव कुमार वर्मा इत्यादि समेत विशाल संख्या में प्रबुद्धजन ने अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज़ करवाई।