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SC: आर्थिक लोकतंत्र, सरकारों की बुद्धिमत्ता पर भरोसा उच्च विकास दर की रीढ़, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

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मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, एक ही आर्थिक सिद्धांत को लागू करके इस सांविधानिक दृष्टिकोण को विफल करना, जो राज्य की तरफ से निजी संपत्ति के अधिग्रहण को अंतिम लक्ष्य मानता है, हमारे संविधान के मूल ढांचे और सिद्धांतों को कमजोर करेगा। शीर्ष कोर्ट ने महाराष्ट्र आवास व विकास प्राधिकरण अधिनियम के कुछ प्रावधानों को निजी संपत्ति मालिकों की ओर से चुनौती दिए जाने से संबंधित याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।

Economic democracy, trust in the intelligence of governments is the backbone of high growth rate, remarks Supr
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने और निर्वाचित सरकार की बुद्धिमत्ता पर भरोसा करने के लिए हमारे संविधान निर्माताओं की दूरदर्शी दृष्टि, भारत की अर्थव्यवस्था की उच्च-विकास दर की रीढ़ रही है, जिसने इसे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना दिया है। कोर्ट ने कहा, संविधान का मसौदा तैयार करते समय निर्माताओं का दृष्टिकोण भविष्य की सरकारों के लिए सामाजिक संरचना या आर्थिक नीति का कोई विशेष रूप निर्धारित करना नहीं था।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की टिप्पणी
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, एक ही आर्थिक सिद्धांत को लागू करके इस सांविधानिक दृष्टिकोण को विफल करना, जो राज्य की तरफ से निजी संपत्ति के अधिग्रहण को अंतिम लक्ष्य मानता है, हमारे संविधान के मूल ढांचे और सिद्धांतों को कमजोर करेगा। शीर्ष कोर्ट ने महाराष्ट्र आवास व विकास प्राधिकरण अधिनियम के कुछ प्रावधानों को निजी संपत्ति मालिकों की ओर से चुनौती दिए जाने से संबंधित याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया। सीजेआई चंद्रचूड़ की ओर से लिखित बहुमत के फैसले में कहा गया कि संविधान को व्यापक रूप से तैयार किया गया था ताकि आने वाली सरकारें आर्थिक शासन के लिए एक संरचना के साथ प्रयोग कर सकें और मतदाताओं के प्रति जवाबदेही वाली नीतियों को अपना सकें।

सीजेआई ने फैसले में लिखा, आज, भारतीय अर्थव्यवस्था सार्वजनिक निवेश के प्रभुत्व से सार्वजनिक और निजी निवेश के सह-अस्तित्व में परिवर्तित हो गई है। कृष्ण अय्यर के दृष्टिकोण में सैद्धांतिक त्रुटि यह थी कि उन्होंने एक कठोर आर्थिक सिद्धांत की स्थापना की, जो सांविधानिक शासन के लिए विशेष आधार के रूप में निजी संसाधनों पर राज्य के अधिक नियंत्रण की वकालत करता है।

मतदाताओं ने एक आर्थिक सिद्धांत को सत्य मानने से इंकार किया
उन्होंने आगे कहा कि भारत की आर्थिक प्रगति यह दर्शाती है कि संविधान और संविधान के संरक्षक – मतदाता – ने नियमित रूप से एक ही आर्थिक सिद्धांत को सत्य के विशेष भंडार के रूप में खारिज कर दिया है। सीजेआई ने कहा, एक जीवंत बहुदलीय आर्थिक लोकतंत्र में भागीदार के रूप में, भारत के लोगों ने ऐसी सरकारों को सत्ता में लाने के लिए मतदान किया है, जिन्होंने देश की उभरती विकास प्राथमिकताओं और चुनौतियों के आधार पर कई आर्थिक और सामाजिक नीतियों को अपनाया है।

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