सर्दियों के आने के साथ तो यह और भी खराब हो सकती है. इस बीच खेतों में पराली जल रही है. दिवाली और उसके आसपास हुई जबरदस्त आतिशबाजी से हवा में जो जहर घुला वह हमारी सांसों के अंदर घुस गया है. अब शादियों का मौसम शुरू हो गया है. आतिशबाजियां इन शादियों में हमको फिर दिखाई दे सकती है. अस्पतालों में श्वास के मरीजों की तादाद लगातार बढ़ रही है और यह दिखा रही है कि कितना ज्यादा खतरनाक रोग हो गया है.
पटाखे का इफेक्ट दो या तीन दिन तक बहुत ज्यादा होता है, हालांकि इस वर्ष जब दीपावली हुई दूसरे दिन संयोग से मौसम अच्छा रहा और हवा तेज बह गई. प्रदूषण के दो स्रोत हैं, जिसमें एक ग्रुप पूरे साल भर प्रदूषण करता है, इनमें गाड़िया, फैक्ट्रियां और पावर प्लांट्स हैं. दूसरे स्रोत में पराली का जलाना, पटाखे या किसी एरिया में कूड़े के ढेर में आग लग जाती है.
आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत तो क्या करें?
अगर आपको किसी भी तरह के पोल्यूटेंट सेंसिटिविटी है, आपको एथमा या एलर्जी की प्रॉब्लम है तो आपकी प्रॉब्लम कई गुना बढ़ने का खतरा होता है. दिवाली से दो-तीन दिन पहले से लेकर अभी तक ओपीडी में सांस के मरीजों की संख्या में कई गुना इजाफा हुआ है. यह सारे पेशेंट पहले इनहेलर से ठीक-ठाक कंट्रोल में थे, लेकिन अचानक से उनका कंट्रोल खराब हो गया