सिरसा। पूर्व सांसद डा. सुशील इंदौरा ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की एकतरफा लहर के बाद भी हुई हार पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह हार पार्टी नेताओं के अति आत्मविश्वास का नतीजा है। जारी बयान में डा. इंदौरा ने कहा कि आज हर जगह, हर गली, हर नुक्कड़ पर और हर आदमी की जुबान पर है कि कांग्रेस की लहर बहुत अच्छी थी। लोगों का रुझान भी कांग्रेस को वोट देने का था, फिर भी कांग्रेस हार गई। इसका क्या कारण रहा? उन्होंने कहा कि मैं जमीन से जुड़ा हुआ व्यक्ति हूं और लगातार लोगों के बीच में जाता हंू। हर जगह लोगों का कहना था कि कांग्रेस को 55-60 सीटें मिलेंगी, लेकिन आई सिर्फ 37 सीटें। इसका मुख्य कारण जब मैं जनता से पूछता हूँ तो वो बताते हैं कि कांग्रेस के नेताओं के बीच आपसी फूट थी। किसी से भी बात करें,, लोग यही कहते हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आपस में ही असहमत थे। लोग तो यहां तक कह देते हैं कि राहुल गांधी को ऐसे नेताओं को घर भेज देना चाहिए। मतलब, लोग साफ-साफ कहते हैं कि ऐसे नेताओं को कांग्रेस से बाहर कर देना चाहिए, जो खुद को बड़ा वोट बैंक समझते हैं और पार्टी हित से ज्यादा अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए राजनीति करते हैं। लोगों का कहना था कि मैं नहीं तो कोई और नहीं जैसे नारे सुनाई दिए, जिसका मतलब था कि अगर मुझे टिकट नहीं मिला तो कोई और भी नहीं जीत सकता। दूसरा कारण जो मेरी व्यक्तिगत समझ और आंकलन के अनुसार था वह यह कि भारतीय जनता पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का लाभ उठाया। खासकर दलित समाज, जो दो हिस्सों में बंटा हुआ है, एक जो चमड़े का काम करता है और दूसरा जो अन्य कार्य करता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला दिया था जो दलित वर्ग में विभाजन की ओर इशारा करता है, जिसमें चमार बनाम गैर-चमार, जाटव बनाम गैर-जाटव जैसी बातों को लेकर एक सामाजिक दरार पैदा हुई थी। एक अगस्त को, वंचित समाज को आरक्षण का वर्गीकरण करने का जो वादा था, उसे वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पूरा करने का आश्वासन दिया था। उन्होंने पहले ही यह वादा किया था, हालांकि आचार संहिता लागू होने के कारण उसे तुरंत लागू नहीं किया जा सका। यह लड़ाई आज की नहीं, बल्कि 2006 से चल रही है। 1996 में चौधरी भजनलाल ने ए और बी वर्ग बनाकर आरक्षण का वर्गीकरण किया था। इससे ए वर्ग के लोग जैसे वाल्मीकि, डांगी, बाजीगर, सैनी, ओड और अन्य वंचित समाजों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में बड़ा फायदा मिला था। इस वर्गीकरण से उन्हें आगे बढऩे का एक अवसर प्राप्त हुआ था। लेकिन 2006 में कांग्रेस की सरकार के दौरान, जब चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री थे, तब इस वर्गीकरण को समाप्त कर दिया गया। हुड्डा कहते हैं कि यह अदालत का फैसला था और उनका इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं था, लेकिन जनता इसे इस तरह नहीं मानती। लोगों की धारणा है कि हुड्डा और कुमारी शैलजा ने इस वर्गीकरण को खत्म कर दिया, जिससे इन वंचित वर्गों के बच्चों की शिक्षा और नौकरियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। डा. इंदौरा ने कहा कि इस चुनाव में भी यह मुद्दा बना रहा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी आया, लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव भी देखा गया। लोकसभा चुनाव में भी हरियाणा की आरक्षित सीटों अंबाला और सिरसा पर भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवार खड़े किए, जबकि कांग्रेस को भी एक सीट वाल्मीकि या धानक समाज को देनी चाहिए थी। यह आम धारणा थी कि चाहे अंबाला या सिरसा में से किसी एक सीट को इस समाज के उम्मीदवार को देना चाहिए था, लेकिन विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने बेहतर तरीके से प्रतिनिधित्व दिया। उन्होंने वाल्मीकि समाज को भी और धानक समाज को भी अच्छे प्रतिनिधि दिए। वहीं कांग्रेस ने इस मामले में चूक की। अगर कांग्रेस ने अपने मौजूदा सीटों के अलावा एक या दो और सीटें वाल्मीकि या धानक समाज को दी होतीं तो इसका चुनावी असर पड़ता। यह वादा भी किया गया था कि वंचित समाज को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इन सभी बातों के कारण एक ऐसा माहौल बना, जिसमें वंचित समाज, खासकर वाल्मीकि, धानक और बाजीगर समुदाय ने कांग्रेस से दूरी बना ली। जाट समाज की भावना कांग्रेस को जिताने की थी, लेकिन वंचित समाज के लोगों का समर्थन न मिलने से कांग्रेस को नुकसान हुआ। डा. इंदौरा ने कहा कि कांग्रेस को पार्टी के भविष्य को देखते हुए अभी से काम करना होगा।