एक बार वाराणसी से 6 किलोमीटर दूर लमही गाँव में चोर का आतंक बहुत ज्यादा था। सभी के घर एक पंक्ति की तरह थे। अभी तक उस पंक्ति के 5 घर में चोरी हो चुकी थी परन्तु चोर पकड़े नहीं गए थे। उस पंक्ति में दस घर थे। अब छठी घर की बारी थी। उस घर में एक लड़का था जिसका नाम अरविन्द था। वह बहुत ही दिमाग का तेज था। अब इसी के घर की बारी थी। इसलिए वह सावधान था। अब पाँच छः दिन से चोरी बन्द थी। अरविन्द रात में पढ़ रहा था तथा जब वह पढ़ कर उठा तो उसकी माँ खाना बनाते समय बोली, ‘बेटा’ रोटी बनाने के लिए बाजार से आटा ले आ। अरविन्द बोला- ‘ठीक है माँ’ मैं अभी ले आता हूँ। अरविन्द ने बाजार गया और आटा खरीद कर घर आने लगा। जब वह घर आ रहा था। तब उसने चोरी का नाम सुना तो उसके कान खड़े हो गए। वह चुपचाप सुनने लगा। वह चोर बोला-कल रात मोहन लाल के घर में चोरी पक्की। सभी बोले ठीक है-ज्योंही उसने अपने पिता का नाम सुना तो वह बहुत घबराया। लेकिन उसने अपने आप को सम्भाल कर घर आया और रोटी पकाने के लिए माँ को आटा दे दिया। सभी बात अपने पिता को बता दी। तब वे थाना जाकर पुलिस को खबर कर दी। पुलिस भी सावधान थे। पुलिस ने कहा-मैं कल रात 7:00 बजे से आपके घर में रहूंगा। सभी पुलिस साधारण कपड़े में आ गए। रात के 10.00 बजे परन्तु चोर नहीं आया। तभी एक पुलिस बोला-सर ! कब तक प्रतिक्षा करेंगे अभी तक चोर नहीं आया। अरविन्द को डर लग रहा था। अगर चोर नहीं आये तो पिता जी समझेंगे यह झूठ बोलता है। उसी समय अचानक टेबुल से टकराने की आवाज आई। सभी पुलिस उस चोर को पकड़ के जेल में डाल दिए। सभी गांव के लोग अरविन्द की बुद्धि से खुश थे।