एक गाँव था जिस गाँव में दो भाई र
हा करते हैं। बड़ा भाई का नाम गरम था और छोटे भाई का नाम नरम था। इनके पिता का नाम मोहन सिंह था। दोनों भाई में प्रेम की भावना रहती थी। रविवार के दिन दोनों भाई बगीचा में टहलने जाते थे। एक दिन दोनों भाई नहा धोकर बगीचा में टहलने गए। उस बगीचे के मालिक ने कहा-अबे, तूने इस पेड़ का टहनी कल क्यों तोड़ा।
गरम-चाचा हम दोनों भाई तो सिर्फ रविवार के दिन ही आते हैं। हमें तो 6 दिन फुरसत ही नहीं मिलती है। माली ने गरम को एक थप्पर मारा और गाली देते हुए कहा-अबे सुअर के औलाद तो कौन तोड़ा। जब गरम का छोटा भाई नरम ने देखा कि माली ने बेमतलब से मेरे भाई पर हाथ उठाया है तो वह आग-बबूला हो गया। जिस हाथ से माली ने उसके बड़े भाई को थप्पर मारा उसी हाथ को उसने तोड़ दिया और इतना पीटा की उसे दिन में तारे दिखने लगे।
माली बोला-मेरे भैया, मुझे अब मत मारो, मैं कान पकड़ता हूँ। मुझसे गलती हो गई। मुझे माफ कर दो। इस पर गरम ने अपने छोटे भाई नरम से कहा-मत मरो, इसे भूल का एहसास हो गया है।