सिरसा। जब-जब पृथ्वी पर प्रलय आता है, भगवान विष्णु अवतरित होते हैं। पहली बार जब जल प्रलय आया तो प्रभु मत्स्य अवतार में अवतरित हुए। वहीं यह पुराण व्रत पूजन और भगवत स्मरण के साथ दान करना बताता है। मत्स्य पुराण अष्टादश पुराणों में से एक मुख्य पुराण है। यह बातें गांव फूलकां स्थित स्वामी लक्ष्येश्वर आश्रम गो सेवा सदन में चल रही मत्स्य महापुराण एवं दुर्लभ सत्संग के पहले दिन कथावाचक स्वामी नित्यानंद गिरी महाराज (कैलाश आश्रम ऋषिकेश वाले) ने उपस्थित श्रद्धालुओं से कही। उन्होंने कहा कि मत्स्य पुराण में 14 हजार श्लोक एवं 291 अध्याय हैं। भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से संबद्ध होने के कारण यह पुराण मत्स्य पुराण कहलाता है। भगवान ने मत्स्यावतार महात्म्य के द्वारा राजा वैश्वत मनु तथा सप्त ऋषियों को जो कल्याणकारी उपदेश दिए, वही मत्स्य पुराण है। मत्स्य पुराण में एक श्लोक है, जो हिंदू धर्म में पारिस्थितिकी की श्रद्धा के महत्व को बताता है। इसमें कहा गया है कि एक तालाब दस कुओं के बराबर है, एक जलाशय दस तालाबों के बराबर है, जबकि एक पुत्र दस जलाशयों के बराबर है और एक पेड़ दस बेटों के बराबर है। स्वामी जी ने बताया कि वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित मत्स्य पुराण, व्रत, पर्व, तीर्थ, दान, राजधर्म और वास्तु कला की दृष्टि से एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पुराण है। प्रारम्भ में प्रलय काल में पूर्व एक छोटी मछली मनु महाराज की अंजलि में आ जाती है। वे दया करके उसे अपने कमण्डल में डाल लेते हैं। किन्तु वह मछली शनै:-शनै: अपना आकार बढ़ाती जाती है। सरोवर और नदी भी उसके लिए छोटी पड़ जाती है। तब मनु उसे सागर में छोड़ देते हैं और उससे पूछते हैं कि वह कौन है? उन्होंने बताया कि भगवान मत्स्य मनु को बताते हैं कि प्रलय काल में मेरे सींग में अपनी नौका को बांधकर सुरक्षित ले जाना और सृष्टि की रचना करना। वे भगवान के मत्स्य अवतार को पहचान कर उनकी स्तुति करते हैं। मनु प्रलय काल में मत्स्य भगवान द्वारा अपनी सुरक्षा करते हैं। फिर ब्रह्मा द्वारा मानसी सृष्टि होती है। कथा के बाद आरती की गई। आरती के बाद सभी को प्रसाद वितरित किया गया। गौशाला प्रधान रविंद्र कुलडिय़ा ने बताया कि कथा रोजाना सुबह 12 बजे से 3 बजे तक चलेगी। उन्होंने सभी गौभक्तों व धर्मप्रेमी सज्जनों से आह्वान किया कि वे कथा श्रवण कर अपने आप को पुण्य का भागी बनाएं।