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सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग

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 सफलता, दृढ़ संकल्प, और खुद पर विश्वास रखने के बारे में बताया गया है। इसके साथ ही, जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने, मेहनत करने, और हार से सीख लेने जैसी बातें भी प्रेरक वचनों के रूप में मिलती हैं। 

जीवन में व्यक्ति कई बार असफलताओं का सामना करता है। इसके जरिए वह अपने मार्ग में सुधार और सीमाओं को समझकर आगे बढ़ता है। इसके अलावा असफलता इंसान को धैर्यवान भी बनाती है जिससे सफलता का मार्ग और भी खुबसूरत बन जाता है। हालांकि फिर भी मन नकारात्मकता और दिमाग तनाव से भर जाता है। श्रीकृष्ण के मुताबिक सुख और दुख जीवन के अभिन्न अंग हैं, जो आते-जाते रहते हैं। इसलिए “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” इसका अर्थ है कि “कर्म करो फल की चिंता मत करो”

यदि आप ऐसे विचार के साथ अपने लक्ष्यों के लिए प्रयास करते हैं, तो सफलता अवश्य मिलती हैं। कहा जाता है कि जब अर्जुन के कदम युद्ध के लिए डगमगाने लगे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का पाठ पढ़ाया था। तभी से जीवन के कठिन समय में गीता का अध्ययन करने की सलाह दी जाती है। इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक शांति का एहसास और सही निर्णय लेने में सफल बनता है। ऐसे में आइए गीता में मौजूद श्लोंको से कुछ अहम के बारे में जानते हैं जिसका अध्ययन मनुष्य को अवश्य करना चाहिए।

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