श्रीमद् भागवत कथा के 7वें दिन द्वारका नगरी की स्थापना व श्रीकृष्ण सुदामा की मित्रता की सुनाई कथा
सिरसा। प्रभात पैलेस में पितृ पक्ष में पितरों कि शांति एवं विश्व कल्याण हेतु श्री बंशीवट कथा समिति द्वारा आयोजित श्री मद्भागवत कथा के सातवें दिन कथा व्यास पंडित सुगन शर्मा ने भगवान श्री कृष्ण द्वारा रुक्मणि से विवाह पश्चात द्वारका नगरी की स्थापना की कथा सुनाई। कथा भगवान श्री कृष्ण व सुदामा की मित्रता पर केंद्रित थी। पंडित सुगन शर्मा ने श्रद्धालुओं को प्रवचन करते हुए कहा कि जिसके पास सच्चा मित्र होता है। उसका जीवन धन्य हो जाता है। कोटि जन्मों के पुण्य और भागवत कृपा होने पर ही सच्चा मित्र प्राप्त होता है। मित्र वो नहीं है जो सदा आपकी बड़ाई करें। आपके हर काम में साथ दे। अपितु मित्र वो है जो आपका साथ हर बुरे
वक़्त में दे और जहां आप गलत हो आपको रोके। भागवत कथा के अंत में शुकदेव जी महाराज ने अपने शिष्य को पास में बैठाया और ब्रह्म ज्ञान दिया। शुकदेव जी गुरु ने कहा हे राजन मैं मरुंगा, यह पशु बुद्धि छोड़ दे। मैं शरीर हूं इस गलत धारणा को छोड़ दो। तू शरीर नहीं है। शरीर जन्म लेता है, बढ़ता है, विकसित होता है बूढ़ा होता है और अंत में मर जाता है। किंतू तू शरीर नहीं है, इंद्रियां, मन, बुद्धि नहीं हो। उन्होंने कहा कि शरीर जन्म लेता है, बढ़ता है और मरता है। लेकिन आत्मा जब जन्म ही नहीं लेती तो मरेगी कैसे।
उन्होंने कहा कि आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकता, पानी इसे गला नही सकता और वायु इसे सूखा नही सकती। आत्मा तो अजर अमर है। मनुष्य को जीवन मरन के बंधन से मुक्त होकर परमात्मा में ध्यान लगाना चाहिए। कथा दौरान
कृष्ण-सुदामा की मनमोहक झांकी निकाली गई। कथा व्यास ने महाभारत युद्ध व द्वारका नगरी के समुन्द्र में समा जाने की कथा सुनाई गई। इस दौरान सुंदर भजन प्रस्तुत किए गए, जिस पर श्रद्धालु जमकर झूमे। कथा के अंत में श्री
बंशीवट कथा समिति के प्रधान इंद्रकुमार चिड़ावेवाला, उपप्रधान सुनील गोयल, सचिव संजय तायल, सहायक उपप्रधान राधेश्याम बंसल, कोषाध्यक्ष रामकुमार जैन, संदीप सोनी, मुनीष शर्मा, संजय गोयल, तरुण बगड़िया, राजेंद्र जिंदल,
दयानंद वर्मा, भवानी शंकर, तरुण, दीपक शर्मा, अश्वनी, रामअवतार, राधा सहित शहर के गणमान्य लोगों ने आरती की। अंत में श्रद्धालुओं को प्रसाद भी वितरित किया।