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आज 25 अक्टूबर को माता जसवंत कौर के भोग दिवस पर विशेष

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-समाजसेवा में हमेशा अग्रणी रहती थी माता जसवंत कौर
-बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की महिला जसवंत कौर हर समय नाम सिमरन में रहती थी लीन
डबवाली
श्रीमति जसवंत कौर न सिर्फ समाज सेवा में हमेशा अग्रणी रहती थी बल्कि उनका ज्यादातर समय नाम सिमरन और भक्ति में ही व्यतीत होता था। 86 वर्षीय माता जसवंत कौर का 16 अक्टूबर को निधन हो गया था और 25 अक्टूबर को डबवाली के गुरुद्वारा विश्वकर्मा साहिब में उनके निमित्त रखे गए पाठ का भोग, कीर्तन व अंतिम अरदास होगी। उन्हें डबवाली शहर व इलाके में माता जी के नाम से जाना जाता था और हर उम्र का व्यक्ति उन्हें माता कहकर ही संबोधित किया करता था।
जसवंत कौर का जन्म एक सैनिक परिवार में फौजी केहर सिंह के घर हुआ था। भारत-पाक बंटवारे के बाद केहर सिंह का परिवार सिरसा जिले के मल्लेकां गांव में आकर बस गया। जसवंत कौर की शादी डबवाली में स. मिठ्ठु सिंह बराड़ के साथ हुई। मिठ्ठु सिंह भी बेहद धार्मिक प्रवृति के समाजसेवी थे। जसवंंत कौर ने डबवाली व आसपास गांवों की लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए उन्हें सिलाई व कढ़ाई की ट्रेनिंग देनी शुरु की और फिर उन्हें स्वेटर बुनने जैसे कामों का प्रशिक्षण दिया। बेहद धार्मिक प्रवृति की महिला होने के कारण वे सुखमणी साहिब सेवा सोसायटी में भी सक्रिय रही और अपना ज्यादातर समय वे लोगों की भलाई और नाम सिमरण में ही लगाया करती थी। उनकी सोच जात-पात धर्म मजहब से ऊपर उठकर हर गरीब अमीर के प्रति एक जैसी थी। आखिरी समय तक वे बेहद फुर्तीले, चुस्त, दुरुस्त थे और उनकी आवाज पूरी कड़क होने के साथ-साथ उनकी नजर व सुनने की क्षमता व यादाश्त भी बिल्कुल ठीक रही। शहर में कभी किसी भी परिवार में कोई दुखद घटना घट जाती तो माता जी सबसे पहले हर किसी के दाह संस्कार में पैदल राम बाग तक जाकर सारी रस्में निभाने में सहयोग किया करते थे। उनके पैदल चलने की स्पीड़ इतनी थी कि जवान बच्चे भी अक्सर पीछे रह जाते थे। शहर में जब कभी भी नगर कीर्तन होता तो वे पूरे नगर कीर्तन के दौरान पैदल साथ चला करते। अगर माता जी को पता चलता कि किसी गरीब परिवार के घर में राशन नहीं है तो वे बाजार से राशन खरीद कर, रिक्शे में रखवा कर चुपचाप उनके घर भिजवा देते। अगर कोई कहीं बीमार होने की सूचना मिलती या किसी बच्चे का कोई एक्सीडेंट हो जाता तो वे उसेे उठाकर रिक्शा में डॉक्टर के पास ले जाते और अपनी तरफ से इलाज करवाकर उन्हें घर पहुंचा देते। उनका जीवन व रहन सहन बेहद सादा था और वे बाजार से बनी हुई कोई मिठाई या खाने पीने का सामान कभी सेवन नहीं करते थे। जब भी जीवन में कोई दुख सुख आता तो वे उसे अकाल पुरख का भाना मानकर सहज भाव से स्वीकार किया किया करते थे। माता जी के निधन की खबर सुनकर उनके बड़े बेटे वरिष्ठ पत्रकार राम सिंह बराड़, छोटे बेटे परमजीत सिंह, मनजीत सिंह व बेटियां बलजीत कौर, गुरमीत कौर व दामाद बलराज सिंह और हरदीप सिंह के साथ-साथ पारिवारिक सदस्यों व रिश्तेदारों के साथ दुख बंटाने इलाके भर के लोग निरंतर आ रहे हैं और माता जी के निधन को डबवाली इलाके के लिए कभी न पूरी होने वाली क्षति है।
माता जी की पुण्य आत्मा को शत शत नमन

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