किसी गाँव में एक मूर्तिकार रहता था। उसकी बनाई मूर्तियां बहुत सुंदर होती थीं। एक बार उसने देवी की बहुत ही सुंदर मूर्ति बनाई। वह मूर्ति उसे दूसरे गाँव पहुँचानी थी, इसलिए उसने अपने मित्र धोबी से उसका गधा मांगा और मूर्ति उस पर लादकर चल पड़ा। मूर्ति इतनी सुंदर और सजीव थी कि जो भी उसे देखता, श्रद्धा से नमस्कार जरूर करता। रास्ते भर यही सब होता रहा। यह देखकर मूर्ख गधे ने सोचा कि सब उसे ही नमस्कार कर रहे हैं। जैसे ही यह बात उसने सोची वह रास्ते में घमण्ड से खड़ा होकर जोर-जोर से रेंकने लगा। मूर्तिकार ने गधे को पुचकार कर समझाया कि यह लोग तुम्हें नही मूर्ति को नमस्कार कर रहे हैं।
मगर गधा तो गधा था। अगर सीधी बात बिना पीटे उसे समझ आ जाती तो उसे गधा कैन कहता। वह रेंकता ही रहा। अंत में मूर्तिकार ने उसकी डंडे से जमकर पिटाई की। मार खाने के बाद गधे का सारा घमंड उतर गया। और उसे पता चल गया कि मैं गधा हुँ। उसके होश ठिकाने आने पर वह फिर से रास्ते पर चल पड़ा।