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प्राकृतिक आपदा के कारण महाराजा अग्रसेन जी महल दब गया था और इस टीलें की खुदाई में महाराजा अग्रसेन जी का खजाना मिल सकता है- बजरंग गर्ग

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टीलें की खुदाई में महाराजा अग्रसेन जी के इतिहास को उजागर करने के साथ-साथ पर्यटन और ऐतिहासिक स्थल के रूप में विकासित होगा- बजरंग गर्ग
अग्रोहा प्राचीन टीला जो पहले 125 एकड़ में महाराजा अग्रसेन जी का महल होता था- बजरंग गर्ग
अग्रोहा टीलें में महाराजा अग्रसेन जी की यादें जुड़ी हुई है- बजरंग गर्ग
अग्रोहा टीलें की पुरी खुदाई में बेसुमार कीमती समान जरूर मिलेगा- बजरंग गर्ग
हिसार- वैश्य समाज के प्रतिनिधियों की मीटिंग अग्रोहा धाम वैश्य समाज के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग की अध्यक्षता में हुई। मीटिंग उपरांत अग्रोहा धाम के  राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने अग्रोहा प्राचीन टीलें पर खुदाई के काम का निरिक्षण किया और भारतीय पुरातत्व विभाग चंडीगढ सर्कल के उपनिदेशक डिप्टी डायरेक्टर डा. बनानी भट्टाचार्य व डा. अंकित प्रधान से टीलें की खुदाई की जानकारी ली और खुदाई 6 फूट तक हो चुकी है। बजरंग गर्ग ने टीलें की खुदाई का निरीक्षण करने पर कहा कि अग्रोहा प्राचीन टीला जो पहले 125 एकड़ में महाराजा अग्रसेन जी का महल होता था। अग्रोहा महाराजा अग्रसेन जी की राजधानी धर्मनगरी थी। अग्रोहा टीलें में महाराजा अग्रसेन जी की यादें जुड़ी हुई है। टीलें की खुदाई में बेसुमार कीमती समान मिलेगा जबकि 23 दिन की टीलें की खुदाई में अनेकों साम्रगी मिली है। यहां तक की 28 ईंटों की दिवारे, पत्थर, मनके की माला, सीढियां, मिटी के खिलौने, कुलड, बर्तन, कलाकृति पत्थर आदि समान मिलने से सिद्ध हो जाता है कि खुदाई में बेसुमार कीमती समान मिलेगा। बजरंग गर्ग ने कहा कि अग्रोहा टीलें की पहले 1937-38 व 1978 से 1981 तक दो बार सरकार ने खुदाई करवाई थी। उस समय भी भारी मात्रा में कीमती साम्रगी निकली थी। जिसमें सिक्के, पत्थर की मुर्तियां, मुहरें, बर्तन, लोहे, तांबे के उपकरण, कई लेर की ईंटों की अनेकों दिवारे आदि निकली थी। अग्रोहा टीलें में इतिहास का भण्डार दबा हुआ है जबकि प्राकृतिक आपदा के कारण महाराजा अग्रसेन जी महल दब गया था और इस टीलें की खुदाई में महाराजा अग्रसेन जी का खजाना मिल सकता। बजरंग गर्ग ने कहा कि अग्रोहा टीलें कि खुदाई से क्षेत्र के विकास को नया आयाम मिलेगा। टीलें की खुदाई महाराजा अग्रसेन जी के इतिहास को उजागर करने के साथ-साथ पर्यटन और ऐतिहासिक स्थल के रूप में विकासित होगा। अग्रोहा शहर तक्षशिल और मुथरा के बीच प्राचीन व्यापार मार्ग पर स्थित था। यह फिरोज शाह तुगलक 1351-88 ईस्वी की नई बस्ती हिसार-ए-फिरोजा 1354 ईस्वी के अस्तित्व में आने तक वाणिज्य और राजनितिक क्षेत्र रहा है। खुदाई शुरु होने से पहले संभावित क्षेत्रों में जीपीआरएस (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) सर्वेक्षण करवाया गया। इस अवसर पर पवन गर्ग, अनिल सिंगला, एनके गोयल, ईश्वर गोयल, ईश्वर असरावा, रवि सिंगला, प्रेम गोयल, महेश अग्रवाल मथुरा, अखिल गर्ग , संदीप सिंह, हरीश शर्मा, महेंद्र शर्मा, सुनील कुमार, विष्णु कुमार आदि प्रतिनिधि भारी संख्या में मौजूद थे।

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