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अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल की 128वीं जयंती मनाई गई

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आज हम स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी, कवि, लेखक और शायर पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की 128वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने छोटे से जीवन में देश की आजादी के लिए अतुलनीय योगदान दिया। उनके साहस, देशभक्ति और बलिदान की गाथा आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। ये बात हनुमान वर्मा वरिष्ठ भाजपा नेता ने प्रैस विज्ञप्ति में कही । सभी ने महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किये ।
वर्मा ने बताया कि राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। मात्र 30 वर्ष की आयु में, 19 दिसंबर 1927 को, उन्होंने गोरखपुर जेल में हंसते-हंसते फांसी के फंदे को गले लगाया और मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। उनके द्वारा लिखी गई कविता “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है” और “मेरा रंग दे बसंती चोला” आज भी युवाओं में देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित करती हैं।
बिस्मिल न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक प्रखर लेखक, कवि, अनुवादक और इतिहासकार भी थे। उन्होंने ‘राम’, ‘अज्ञात’ और ‘बिस्मिल’ जैसे उपनामों से हिंदी और उर्दू में कई रचनाएँ लिखीं। उनकी आत्मकथा, जिसे लखनऊ सेंट्रल जेल में लिखा गया, हिंदी साहित्य की एक अमूल्य कृति मानी जाती है। उन्होंने अपनी पुस्तकों की बिक्री से प्राप्त धन को स्वतंत्रता संग्राम के लिए हथियार खरीदने में लगाया, जो उनकी देशभक्ति की गहराई को दर्शाता है।
वर्मा ने कहा कि बिस्मिल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसे उन्होंने सचिंद्र नाथ सान्याल और जादूगोपाल मुखर्जी के साथ मिलकर स्थापित किया। मैनपुरी षड्यंत्र (1918) और काकोरी कांड (1925) जैसी घटनाओं में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। काकोरी कांड में सरकारी खजाने को लूटकर उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाया, जिससे ब्रिटिश शासन में खलबली मच गई थी। इस घटना के लिए उन्हें, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के साथ फांसी की सजा सुनाई गई।
हनुमान वर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता, ने इस अवसर पर कहा, “राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने न केवल अपने शब्दों से, बल्कि अपने कार्यों से भी देशवासियों को आजादी के लिए प्रेरित किया। उनकी हिंदू-मुस्लिम एकता की भावना, विशेष रूप से उनके मित्र अशफाक उल्ला खां के साथ उनके संबंध, एकता और भाईचारे का प्रतीक हैं। आज हम उनके बलिदान को नमन करते हैं और संकल्प लेते हैं कि उनके सपनों के स्वतंत्र और समृद्ध भारत को साकार करने के लिए निरंतर प्रयास करेंगे।” उत्तर प्रदेश सरकार ने गोरखपुर जेल में उनके फांसी स्थल को भी संरक्षित कर जनता के लिए खोला गया है, ताकि युवा पीढ़ी उनके बलिदान से प्रेरणा ले सके।
हम सभी देशवासियों से अपील करते हैं कि बिस्मिल के आदर्शों को आत्मसात करें और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची देशभक्ति न केवल शब्दों में, बल्कि कर्मों में भी झलकनी चाहिए।

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