कालांवाली ( )चमत्कारी बाबा श्री प्रेम सुख जी महाराज अद्वितीय इनके जीवन में अधिक साधना थी, जिसके कारण उनके जीवन में सरस्वती का वास था। इसके प्रभाव से गुरुदेव श्री प्रेमसुख जी महाराज जिसे भी अपने मुखारविंद से अपना आशीर्वाद के रूप में वचन वाणी के माध्यम से बोल देते थे। वह शत प्रतिशत पूरा होता था। गुरुदेव प्रेम सुख के जीवन में वचन सिद्धि थी। एक बार ऐसा हुआ गुरुदेव श्री प्रेम सुख जी महाराज देहरादून में साधनारत थे। वहीं पर एक पति पत्नी का जोडा प्रात: दिन निकलते ही दर्शन के लिए आ गए। गुरुदेव श्री के दर्शन किए और उनके चरणों में बैठ गए। गुरु देव की और नजर कर हाथ जोड़ कहने लगे। गुरु देव हमारी तीन लड़किया हैं। चौथी भी डाक्टर ने लड़की बताई है, हम क्या करें गरीबी है। आगे बच्चों का कैसे होगा। मैं छोटी सी नौकरी करता हूँ। मुश्किल से गुजरा चलता है। चार लड़कियों की शादी कैसे करूंगा और कैसे पढ़ाऊंगा। इस बात से बहुत दुखी हूं। पति-पत्नी के आंखो में आंसु थे। सदगुरु गुरु देव श्री प्रेमसुख जी ने दया भरी दृष्टि से देखा और कहा धम्मो रक्षति रक्षत, अर्थात है भक्तजन अहिसा धर्म कि रक्षा करने से हमारी भी रक्षा होती है। मेरे कहने का भाव है। तुम्हारे घर में बेटी नहीं बेटा होगा। भ्रृण हत्या नहीं करना। तुम्हारे बेटा ही होगा। हिंसा अपने जीवन में नहीं करना। तुम्हे एक तपस्या रूप बताता हूं कि जैन धर्म में सामायिक साधना है और महामंत्र नवकार का जाप हैं। जिसे प्रतिदिन मेरे चरणों में आकर पांच सामायिक कि साधना चार घंटे तक एक ही आसन में बैठ कर जाप करो। ऐसा करने पर तुम्हारा लड़का अवश्य होगा। इस दौरान गुरुदेव के मंगल पाठ मंगल मंत्र के रूप को दोनों पति पत्नी ने बडी श्रद्धा के साथ सुना और पति पत्नी ने सदगुरू के बताएं धर्म की पालना की। नौ माह के गुरु दर्शन से उनकी लड़की न होकर लड़का हुआ। इस प्रकार से डाक्टर की बातें मशीन कि बातो को निरस्त किया। गुरुदेव श्री प्रेम सुख ने महाराज को वचन सिद्धि थी। गुरु देव ने अपने जीवन में लाखों लोग को अपना आर्शीर्वाद देकर निहाल किया। उनके तीन शिषय उपाध्याय प्रवर श्री रविंदर मुनी जी महाराज साहब,श्री रमनीक मुनि जी महाराज साहब और उनके अन्तेवासी शिष्य श्री उपेन्दर मुनी जी महाराज साहब अपने शिष्यों के साथ उनके बताये हुए मार्ग पर चल कर समाज में भगवान महावीर प्रभु कि वाणी को घर घर पहुंचा रहे है।
प्रस्तुति : गुरु भक्त नरेश गर्ग जैन