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पराली को खेत में मिलाने से बढती है उर्वरता शक्ति’

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– कृषि विभाग की टीमें गांव-गांव पहुंच कर किसानों को पराली प्रबंधन के लिए कर रही जागरूक
कृषि विभाग की टीमों ने किसानों- ग्रामीणों को पराली जलाने से होने वाले दुष्परिणामों, पर्यावरण पर पड़ने वाले गंभीर प्रभाव और पराली प्रबंधन के वैज्ञानिक उपायों की विस्तृत जानकारी दी। शनिवार को टीमों ने मल्लेकां, रत्ताखेडा, जोधपुरिया, झोरडनाली, अभोली, सूचान, अलीकां, बुर्जकर्मगढ, शहीदांवाली, खैरेकां, कुसुंभी आदि गांवों में ग्रामीणों से संवाद किया और उन्हें पराली प्रबंधन के लिए प्रेरित किया।
कृषि विभाग के उप निदेशक डॉ सुखदेव सिंह ने बताया कि कृषि विभाग की टीमों द्वारा पराली प्रबंधन को लेकर जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, जिसमें किसानों को बताया गया कि पराली को खेतों में मिलाकर मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाया जा सकता है। इससे न केवल भूमि की उर्वरता शक्ति बढ़ेगी बल्कि रासायनिक खादों पर खर्च भी कम होगा। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा पराली प्रबंधन मशीनों पर सब्सिडी उपलब्ध कराई जा रही है, जिसका उपयोग कर पराली को खेत में ही समेट सकते हैं या उसकी गांठें बनाकर विभिन्न उद्योगों को बेच सकते हैं।
उन्होंने  बताया कि धान की पराली जलाने से वातावरण में जहरीली गैसें निकलती हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। धुएं से सांस, आंख और त्वचा संबंधी रोग फैलते हैं। इतना ही नहीं, पराली जलाने से खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता घट जाती है और उसमें मौजूद उपयोगी कीट व सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं। पराली की गांठें बनाकर बिजली संयंत्र, पेपर मिलों और मशरूम उत्पादन इकाइयों को बेचा जा सकता है। इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी होगी और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिलेगा।
उन्होंने सभी किसानों से अपील की है कि वे पराली में आग न लगाकर उचित पराली प्रबंधन अपनाएं।

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